संत गाडगे मिशन के तत्वावधान में *आधुनिक भारत के निर्माता, युग परिवर्तक, symbol of knowledge, भारत रत्न एवम् भारतीय संबिधान के शिल्पीकर, बोधिसत्व बाबा साहेब डॉ बी आर अंबेडकर जी का,135 वाँ जन्म दिवस समारोह 4.00 बजे (शाम) , दिनांक: 14/04/2025 ( सोमवार) *संत गाडगे मंदिर परिसर*, बिंदापुर, जे जे कालोनी, उत्तम नगर, नई दिल्ली- 110059 पर बड़े ही धूम धाम से मनाया गया।
इस समारोह की अध्यक्षता डॉ जी डी दिवाकर, अध्यक्षत, संत गाडगे मिशन ने की। इस अवसर पर कक्षा,1 से कक्षा,12 वी के छात्रों को स्टेशनरी देकर उनका होंसला अफजाई किया। अतः बुद्धजीवी साथियों ने बाबा साहेब के जीवन संघर्ष , त्याग एवम् बलिदान केविषय में जानकारी दी तथा अपने बहुमुल्य सुझावो से अवगत कराया। श्री छोटे लाल जी ने छात्रों को डॉ ए पी जे कलाम जी द्वारा रचित पुस्तक “ अग्नि की उड़ान “ सप्रेम भेंट की l डॉ अजय रजक जी ने भारत रत्न बाबा डा. बी.आर.अंबेडकर को दलितों के लिए मुक्ति दाता, बहुजन को समता, स्वतंत्रता, व भाई चारे से रहने के लिए संविधानिक अधिकार आदि के बारे में जानकारी दी ।
इस अवसर पर देशराज राघव जी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। और बच्चों को पुरस्कार वितरित किये
भारत रत्नबाबा डा. बी.आर.अंबेडकरजी के विचार:
अपनी सरकार चुननें का अधिकार ," एक वोट एक मूल्य " का बहुत बड़ा तोहफा दिया। संसार का सबसे उत्तम धर्म," बौद्ध धम्म " प्रदान किया, जिससे कोई भी इंसान, इसी जीवन में मुक्ति पा सकता है।
बौद्ध जीवन मार्ग: शुभ कर्म , अशुभ कर्म तथा पाप
- शुभ कर्म करो। अशुभ कर्मों में सहयोग न दो। कोई पाप कर्म न करों। यही बौद्ध जीवन - मार्ग हैं। यदि आदमी शुभ कर्म करें, तो उसे पुनः पुनः करना चाहिए, उसी में चित लगाना चाहिए। शुभ कर्मो का संचय सुख कर होता है।
- भलाई के बारे में यह मत सोचों कि मैं इसे प्राप्त न कर सकूंगा। बूंद बूंद करके घड़ा भर जाता है। इस प्रकार थोड़ा - थोड़ा करके बुद्धिमान आदमी बहुत शुभ कर्म कर लेता है।
- जिस काम को करके, आदमी को पछताना न पड़े और जिस काम के फल को वह आनन्दित मन से भोग सके, उस काम को करना अच्छा होता है।
- अच्छे आदमी को भी बुरे दिन देखने पड़ जाते हैं; जब तक उसे अपने शुभ कार्यों का फल मिलना आरम्भ नहीं होता। लेकिन जब से शुभ कर्मो का लाभ मिलना आरम्भ होता हैं तब अच्छा आदमी अच्छे दिन देखता है।
- शील ( सदाचार ) की सुगंध चन्दन, अगर तथा मल्लिका आदि सबकी सुगंध से बढ़कर है। धूप और चंदन की सुगंध कुछ ही दूर तक जाती है, किन्तु शील की सुगंध बहुत दूर तक जाती हैं। जो शीलवान है, जो प्रज्ञावान है,जो न्यायी है, जो सत्यवादी है तथा जो अपने कर्तव्यों को पूरा करता है,वह लोगों को प्रिय होता है।
- बुराई के बारे में यह न सोचें कि वह मुझ तक नहीं पहुंचेगी। जिस प्रकार बूंद - बूंद करके घडा़ भरता है, उसी प्रकार थोड़ा - थोड़ा करके अशुभ कर्म भी बहुत हो जाते हैं। बुराई से हमेशा दूर रहना अच्छा होता है। कोई भी ऐसा काम करना अच्छा नहीं, जिसके करने से पछताना पडे़ और जिस का फल अश्रु मुख होकर रोते हुए भोगना पडे़।
- यदि कोई आदमी दुष्ट मन से कुछ बोलता है व कोई काम करता है तो दुःख उसके पीछे-पीछे ऐसे हो लेता है,जैसे गाडी़ का पहिया खींचने वाले बैल के पीछे पीछे।
- पाप कर्म न करें। प्रमाद सेन रहे। मिथ्या दृष्टि न रखें। पापी भी सुख भोगता रहता है, जब तक उसका पाप कर्म नहीं पकता। लेकिन जब उसका पाप कर्म पकता है, तब वह दु:ख भोगता है। यदि आदमी पाप कर बैठे तो उसे बार बार न करें। पाप में आनन्द न माने। पाप इकट्ठा होकर बहुत दुःख देता है।
- आदमी को शुभ कर्म करने में जल्दबाजी करना चाहिए और मन को बुराई से दूर रखना चाहिए। यदि आदमी शुभ कर्म करने में ढीलाई करता है तो उसका मन पाप की ओर भटकता है।
- लोभ और तृष्णा के बारे में लोभ और तृष्णा के वशीभूत न हो। यही बौद्ध जीवन है। लोभ से दु:ख पैदा होता है; लोभ से भय पैदा होता है। ज़ो लोभ से मुक्त है, उसके लिए न दुःख है न भय है। तृष्णा से दुःख पैदा होता है; तृष्णा से भय पैदा होता है। जो तृष्णा से मुक्त है, उसके लिए न दुःख है न भय है। आसक्ति से दू:ख पैदा होता है; आसक्ति से भय पैदा होता है। जो आसक्ति से मुक्त है, उसे न दुःख है न भय होता है।
- धन की वर्षा होने से भी आदमी की कामनाओं की पूर्ति नहीं होती है। बुद्धिमान आदमी जानता है कि कामनाओं की पूर्तिमें अल्प स्वाद है और दु:ख अधिक है।
- क्लेश और द्वेष के बारे में किसी को क्लेश मत दो; किसी से द्वेष मतर खो । यही बौद्ध जीवन मार्ग है।
- यदि कोई आदमी किसी अहानि कर, शुद्ध और निर्दोष आदमी के विरुद्ध कुछ करता है तो उसकी बुराई आकर उसी आदमी पर पड़ती है, ठीक वैसे ही जैसे हवा के विरुद्ध फेंकी हुयी धूल फेंकने वाले पर ही आकर गिरती है।
- क्रोध और शत्रुता के बारे में क्रोध न करें। शत्रुता को भूल जाएं। शत्रु को मैत्री से जीतों। यही बौद्ध जीवन मार्ग हैl जो यही सोचता रहता है, " उसने मुझे गाली दी, उसने मेरे साथ बुरा व्यवहार किया, उसने मुझे हरा दिया " उसका वैर कभी शान्त नहीं होता है। जो ऐसे विचार नहीं रखता, उसी का बैर शान्त होता है।
- मन और मन के मैल के बारे में आदमी वही कुछ होता है, जो कुछ उसका मन उसको बना देता है। सन्मार्ग परआगे बढ़ाने के लिए मन की साधना पहला कदम है। हर बात में मन ही पूर्वगामी है, मन ही मुख्य है। यदि कोई आदमी दुष्ट मन से कुछ बोलता है या करता है, तो दुःख उसके पीछे-पीछे ऐसे ही हो लेता है जैसे गाडी़ के पहिए गाडी़ खींचने बाले पशु के पीछे पीछे। यदि आदमी स्वच्छ मन से कुछ बोलता है या करता है, तो सुख उसके पीछे-पीछे ऐसे ही हो लेता है, जैसे कभी साथ न छोड़ने वाली छाया आदमी के पीछे पीछे।
- इस चंचल, अस्थिर मन को मेधावी आदमी ऐसे ही सीधे करता है, जैसे बाण बनाने वाला बाण को। मनको काबू में रखना कठिन है,जो चंचल है, जो हमेशा " मौज मस्ती खोजता है, ऐसे मन को काबूमें रखना अच्छा है। काबू में रखा हुआ मन सुख देने वाला होता है।
- अपने आपको दीप बनाओं, परिश्रम करो, जब तुम्हारे चित्तमलों का नाश हो जायेगा और तुम निर्दोष हो जाओगे, तो तुम दिव्य भूमि को प्राप्त होंगे। जिस प्रकार सुनार थोड़ा थोड़ा करके चांदी के मैल को दूर कर देता है, उसी प्रकार बुद्धिमान आदमी को चाहिए कि क्षण- क्षण करके, थोडा़ थोडा़ करके अपने चित्त के मैल को दूर कर दें।
- जिस प्रकार लोहे से उत्पन्न हुआ जंग लोहे को ही खा जाता है, उसी प्रकार पापी के अपने दुष्कर्म उसे दुर्गति तक ले जाता है।
- सब मलों से भी बढ़कर मल है अविघा। इस मल का त्याग कर निर्मल हो जाएं।
- जो आदमी हिंसाचार करता है; झूठ बोलता है, चोरी करता है, जो व्यभिचार करता है, जो नशा सेवन करता है वह यही, इसी संसार में अपनी कब्र आप खोदता है।
- संसार किसी को कुछ देता है तो श्रद्धा से देता है यदि आदमी दूसरे को मिलने वाले लाभ को देखकर जलता है तो उसको न दिनको शांति मिल सकती है न रात को। राग के समान आग नहीं और लोभ के समान ओघ (बाढ़ ) नहीं।
- सभी पापों से बचें, कुशल कर्म करें, अपने विचारों को शुद्ध रखें यही बुद्ध की शिक्षा है। जो मूर्ख अर्हतों के अथवा शीलवानों केशासन की उपेक्षा की दृष्टि से देखता है और झूठे सिद्धांतों का अनुकरण करता है, तो जिस प्रकार बांस के फल उसके अपने विनाश का ही कारण बनते हैं, उसी प्रकार उस आदमी के कर्म उसके अपने विनाश का ही कारण बनते हैं।
- आदमी स्वयं पाप करता है और स्वयं भोगता है। स्वयं पाप से विरत रहता है और स्वयं ही परिशुद्ध होता है। शुद्धि और अशुद्धि दोनों ही व्यक्तिगत है कोई किसी को परिशुद्ध नहीं कर सकता।
- पहले आपने आप को ही ठीक मार्ग पर लगायें तब दूसरे को उपदेश दे। बुद्धिमान आदमी को चाहिए कि कोई ऐसा अवसर न दे , कि दूसरे उसे कुछ कह सुना दें। बुद्धि न्याय और संगति के बारे में बुद्धिमान बने, न्यायशील रहों और अच्छी संगति रखो। यही बौद्ध जीवन मार्ग है।
- पापी पुरुषों की संगति न करें। नीच पुरुषों की संगति न करें। सदाचारीयों को मित्र बनाए, श्रेष्ठ पुरुषों को मित्र बनाए। धम्मामृत का पान करता है, वह प्रशन्न चित से सुख पूर्वक रहता है। श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा उप दिष्ट धम्म में पंडित आदमी सदा सुखी रहता है।
- यदि आदमी को अपने से श्रेष्ठ व अपने समान साथी न मिले, तो उसे अकेले ही अपना जीवन पथ पर आगे बढ़ना ठीक है, किन्तु मूर्खों की संगति अच्छी नहीं। " यह मेरे पुत्र हैं यह मेरा धन है, " यही सोच सोच कर मूर्ख आदमी दुःखी होता रहता है। अपना आप ही अपना नहीं है, कहां पुत्र और कहां धन।
- जो मूर्ख आदमी अपने को मूर्ख समझता है, उतने अंश में वह भी पंडित है, असली मूर्ख वह है, जो मूर्ख होकर भी अपने आप को पंडित समझता है। बहुत बोलने से आदमी धम्म धर नहीं होता है; बल्कि जो चाहे थोडा़ धम्म सुने, किन्तु जो उसे कार्यरूप में परिणित करता है,जो धम्म के विषय में कभी प्रमाद नहीं करता है, वहीं धम्मधर कहलाता है।
- चित्त की जागरूकता और एकाग्रता के बारे में प्रत्येक कार्य करते समय जागरूक रहें, प्रत्येक काम में सोच विचार से काम लो; हर विषय मेंअप्रमादी और उत्साही रहों यही बौद्ध जीवन मार्ग है।
- विचारहीन मत बनों, विचारवान बनों। दलदल में फंसे हुए हाथी की तरह अपने आप को पापों से उबारों। जो कुछ हम है,यह सब हमारे विचारों का परिणाम है,यह हमारे विचारों पर आधारित है; हमारे विचारों से ही निर्मित है। यदि आदमी बुरे विचारों से कुछ भी बोलता है या करता है, तो वह दुःख भोगता है। यदि आदमी पवित्र विचारों सेकुछ भी बोलता या करता है, तो उसे सुख मिलता है। इसलिए पवित्र विचार महत्वपूर्ण है।
- आदमी को चाहिए कि वह अपने चित्त को काबू में रखें। जिस प्रकार ठीक से न छाई हुई छत में पानी घुस जाता है, उसी प्रकार यदि चित्त साधना विहीन है तो उसमें राग प्रबेश कर जाते हैं, उसी प्रकार साधना युक्त चित में राग का प्रवेश नहीं हो पाता है। पहले तो यह चित्त जहां चाहे वहां गया; लेकिन अब मैं इस चित्त को वैसे ही काबू में रखूंगा, जैसे अंकुशधारी हथवान् मस्तहाथी को। जहां चाहे वहां जाने बाले चित को साधना अच्छाहै। इसे काबू में रखना कठिन है, किन्तु साधना -युक्त चित्त सुखद होता है।
- एक द्वेषी आदमी अपने द्वेष से आदमी की जितनी हानि नहीं कर सकता है, एक शत्रु अपने शत्रु को जितना नुकसान नहीं पहुंचा सकता है, गलत रास्ते पर गया हुआ चित्त आदमी की उससे कहीं अधिक हानि कर सकता है।इसी प्रकार, ठीक रास्ते पर गया हुआ चित्त, आदमी की जितनी भलाई कर सकता है, उतनी भलाई न माता - पिता ही कर सकते हैं और न अन्य रिस्तेदार ही कर सकते हैं।
- अप्रमाद और वीर के वारे में प्रमादियों कोअप्रमादी, सोते हुए को जागने वाला ऐसे ही पीछे छोड़कर चला, जाता है जैसे ताकतवर घोड़ा दुर्बल घोड़े कोअप्रमादी बनों। प्रमाद को दूर भगाओं। सत्य पथ पर चलों; जो आदमी सत्य पथ पर चलता है, वह दुनिया में सुख से रहता है। यदि कोई अप्रमाद युक्त आदमी जागरूक रहता है। यदि वह विस्मरणशील नहीं है, यदि उसकी चर्या शुद्ध है, यदि विवेक से काम लेता है, यदि वह संयत है तथा उसका आचरण धम्मानुसार है तो उसका यश बढ़ता है।
- दुःख और सुख, दान और दया के बारे में गरीबी से दुःख पैदा होता है। लेकिन यह आवश्यक नहीं की गरीबी दूर होने से आदमी सुखी भी हो जाय। ऊंचा जीवन स्तर नहीं, बल्कि ऊंचा आचरण सुख का मूल मंत्र है। यही बौद्ध जीवनमार्ग है।
- स्वास्थ्य सबसे बडा़ लाभ है। संतोष सबसे बडा़ धन है। विश्वास सबसे बड़ा रिश्तेदार है और निर्वाण सबसे बडा़ सुख है।
- दूसरों की कमियों की ओर व दूसरे के कृत-अकृत की ओर मत देखो। अपनी ही कमियों या अपने ही कृत-अकृत कीओर देखों। किसी सेकठोर वचन मत बोलों। क्रोध युक्त बाणी दुःखद है। किसी पर भी प्रहार करोगे तो तुम पर भी प्रहार होगा।
- स्वतंत्रता, उदारता, सदाशयता और नि:स्वार्थता का संसार के लिए वैसा ही महत्व है, जैसे धुरी का पहिये के लिए। बौद्ध धर्म में इसी तरह की तर्क संगत, वैज्ञानिक शिक्षाओं का संग्रह है। बौद्ध धर्म सबके लिए कल्याण की भावना रखता है। उसमें कहीं भी हिंसा को बढ़ाने वाली, किसी को दूसरे पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए उकसाने बाली बातें नहीं है। उसमें किसी के विरुद्ध छल-कपट करने के लिए सीखाने वाली बातें नहीं है।
Dr. GD DIWAKAR,
President, Sant Gadge Mission
Delhi