Skip to main content

सेवा में, 

आदरणीय प्रधानमंत्री महोदय, 

भारत सरकार, 

विषय: संत गाडगे महाराज को भारत रत्न से विभूषित करने के लिए प्रार्थनापत्र 

आदरणीय प्रधानमंत्री साहेब, 

उपरोक्त विषय के संदर्भ में प्रार्थना पत्र प्रेषित कर रहा हूँ। कृपया निम्न 12 बिन्दुओं का सकारात्मक अवलोकन करने की महान कृपा करें । 

1.  गाडगे महाराज एक अनोखे संत थे। उन्हें 20 वीं सदी के नवजागरण का अग्रदूत कहा जाता है। संत गाडगे एक निष्काम कर्मयोगी थे, जिन्होंने संतों के कार्यो को एक नया आयाम दिया था। ईश्वर भक्ति की लीक से हटकर, उसे मानव द्वारा-मानव की सेवा, स्वच्छता, समानता और लोक सेवा से जोडा था। बदलते युग की आवश्यकता के अनुरूप लोक सेवा के स्वरूप को क्रांतिकारी मोड़ दिया था। गाडगे बाबा लोक सेवा और स्वच्छता अभियान के जनक थे। जिन्होंने झाड़ू, श्रमदान और पुरूषार्थ को अपना हथियार बनाया। इन हथियारों के बल पर उन्होंने ऐसे-ऐसे कार्य किये, जो आज समस्त भारतीयों  के लिए अनुकरणीय बन गए। स्वच्छता अभियान से समाज में भयंकर बीमारियों के फैलने पर रोक लगी थी। 

2.    गाडगे बाबा ने आत्मज्ञान, चिन्तन और भजन के माध्यम से सत्य को उद्घाटित किया था। उनके भजन अनुभूतिक ज्ञान से ओतप्रोत, प्रभावोत्पादक और लोक यर्थात का पुट लिए होते थे। उनकी वाणी का असर बैसे ही होता था जैसे दही जमाने में जामन का होता है। उनके अनुयायीओं में सभी समाज एवं जाति वर्ग के लोग होतें थे। वे कबीर साहेब की परम्परा के एक क्रांतिकारी संत थे। जिन्होंने अपनी प्रखर वाणियों और भजन द्वारा न केवल समाज में व्याप्त रूढ़ियों- कुरीतियों, अंधविश्वासों के खिलाफ अलख जगाई और समाज के आभावों को दूर करने और आगे ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। करोड़ों लोगों को कर्मयोग की चेतना दी। अंधविश्वासों और आमानवीय धार्मिक परम्पराओं से विद्रोह करने की प्रेरणा दी। 

3.  उन्होंने अपने उपदेशों पर अमल स्वयं अपने जीवन मे करके एक उदाहरण प्रस्तुत किये थे। जन साधारण की भाषा और बोलियों में अपनी बातों को लोगों के सामने रखा था । जिससे लोग अनुकरण करने हेतु स्वयं प्रोत्साहित हुए। 

4.  उनका वैराग्य जीवन भ्रमणशील था। घूम- घूम कर लोगों को भजन, कीर्तन के माध्यम से जागृत कर रहे थे। उन भजनों द्वारा उद्घाटित सत्य ने आंदोलन का रूप ले लिया था। यातायात के सीमित साधनों के बावजूद  उनका विस्तार न केवल महाराष्ट, मध्य प्रदेश में  हुआ , बल्कि देश भर में उनकी  ख्याति बढ़ी थी। 

5.  गाडगे बाबा सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वासों, धार्मिक आडम्बरों, जात-पात, छुआ- छूत, दहेज प्रथा, बाल विवाह, अशिक्षा, शराबखोरी, सूदखोरी, आदि के विरुद्ध भजनों  के माध्यम से आवाज उठाई।

6.  अक्षर ज्ञान न होते हुए भी, शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि विद्या बहुत ही बड़ी चीज है। पैसे की तंगी हो तो खाने के बर्तन बेच दो, घर परिवार के लिए कम कीमत के कपड़ों को खरीदो, टूटे- फूटे मकान में रह लो, कठिन परिश्रम कर धन का अर्जन करो, पर बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाये बिना न रहो। उन्होंने शिक्षा के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि  " हम लोगों में से कुछ लोग शिक्षा के बल पर दिल्ली की राजगद्दी पर शासन करते है, और हममें से बिना शिक्षा के लोग बोरीबंदर स्टेशन पर कुलीगीरी करते है। 

7.  गाडगे महाराज सिर्फ प्रवचन देने बाले संत नहीं थे। उन्होंने सर्वजन समाज के कल्याण के लिए एवं सामाजिक क्रांति व आर्थिक, सामाजिक समानता के लिए 31 स्कूल, 15 बालक एवं बालिकाओं के लिए छात्रावासों, 18 धर्मशालाओं, 4 अंध पंगु आश्रम, 2 गौशालाओं, 2 नदी घाटों आदि का निर्माण एक विशेष पद्धति, " लोगों द्वारा लोगों के लिए " (देश की आज़ादी के पहले ) महाराष्ट्र प्रदेश में किया था। जिससे शिक्षा के बाजारूकरण पर रोक लगी थी। यही " पे बैक टू दा सोसाइटी " का संदेश मान्यवर काशीराम, बाबा साहेब अंबेडकर आदि महापुरुषों के मार्फत हम आप के सामने आता है। जिसे हम बहुजन भूल गए थे। जिस समाज में जन्म लिया, उसका अन्न जल ग्रहण कर बड़े हुए एवं समाज से ज्ञान प्राप्त किया, उसे तन - मन- धन से कुछ लौटाने का भाव हमेशा रखना चाहिए। यदि संत गाडगे महाराज के जीवन व उपदेशों एवं कार्यों को समाज के लोग अपना ले , तो समाज में हर तरह की चेतना आ जायेगी तथा बहुजन समाज देश की मुख्यधारा में आ जायेगा। उन्होंने श्रमदान और चन्दे से, एक नये युग का सूत्रपात किया था। मिट्टी के पात्र, झाड़ू और श्रमदान उनके प्रतीक चिह्न थे। उन्ही के सहारे उन्होंने उपरोक्त बडे- बडे कार्यो को अंजाम दिया था। 

8.  गाडगे बाबा की साधुता, दिव्य पौरुष और लोक कल्याणकारी कार्यो ने देश के तत्कालीन आमजन, खासकर राजनीति के दो शिखर महापुरुष, महात्मा गॉंधी और बाबा साहेब डा. अंबेडकर को भी प्रभावित किया था। दोनों महापुरुष , संत गाडगे बाबा के बडे प्रशंसक थे। बाबा साहेब डा. अंबेडकर समय - समय पर संत गाडगे से विचार विमर्श करते रहते थे, खासकर बाबा साहेब ने बौद्ध धम्म गृहण करने के संदर्भ में उनसे विचार विमर्श  करने का उल्लेख मिलता है। महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री बी.जी.खेर , संत गाडगे बाबा को अपना गुरु मानते थे। 

9.  जिस प्रकार का गलत व्यवहार अंग्रेज, हिन्दुओं के साथ करते थे, उससे कई गुणा अधिक बुरा व्यवहार सर्वण हिन्दू ,अपने समाज के निम्न जाति के लोगों से करते थे। हिन्दू समाज अनेकों प्रकार के पाखंण्डों, मिथ्याचारों और बाह्य आडम्बरों से ग्रसित था। धर्म के नाम पर मानवता को शर्मसार किया जाने लगा था। ऐसे समय संत गाडगे बाबा का जन्म 23 फरवरी, 1876 को महाराष्ट्र के शेणगांव में हुआ था। उन्होंने " परमारथ के कारने साधु धरा शरीर " को चरितार्थ किया। उनकी आंतरिक चेतना जाग्रत हुई जो प्रज्ज्वलित होकर समाज को प्रकाश देने लगी थी। वे शोहरत से दूर भागते थे, पर वह उनका पीछा करती रहती थी। 

10.  गाडगे बाबा ने 29 वर्ष की उम्र में अपना ग्रह त्याग कर एक नई राह दिखाई। पत्नी और परिवार को छोडकर गौतमबुद्ध की भांति विरक्त जीवन जीने बाले संत गाडगे बाबा ने विश्व को अपना घर बनाया। गरीब- गुरवे, पृथ्वी,  नदी- नाले, पेड़- पौधों, पशु-पक्षियों को अपना साथी समझते थे। वे उपनिषदों के संत वचन, " वसुधैव कुटुम्बकम आत्मवत सर्वभूतेषु " के आदर्शों को मानते हुए विभिन्न जगहों पर जा - जा कर उपदेश दिया करते और प्रश्न करते थे कि ऐसे महान आदर्शों पर जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था कैसे भारी पडी? कौन से षड्यंत्र रचे गये?, इसे जानों,  समझो और तोड़ो। 

11.  संत गाडगे जाति - पात से ऊपर थे। उन्होंने लोक कल्याण की तीव्र भावना के बल पर जनता में अपनी पैठ बढ़ाई और करोड़ों निर्धन, असहाय लोगों के साथ ही सभी वर्गों के जीवन को प्रभावित किया। पुरूषार्थ द्वारा जीवन के रहस्यों को जानने के बाद वे नि:सहाय व आमजन को जगाने तथा अपने आदर्शों को अमल में लाने के लिए लोक सेवा को अपनाया। उनके भजन और उपदेश सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और व्यवहारिक जीवन के विशद और विविध अनुभवों से ओत-प्रोत होते थे तथा वो जो भी कहते थे वह सहज बोधगम्य होता था। एक सामान्य सूचना पर हजारों लोग उन्हें सुनने के लिए उमड़ पड़ते थे। 

12.  संत गाडगे महाराज के प्रति राष्ट्रीय सम्मान:

 (क).  सन् 1976 में गाडगे बाबा का जन्म शताब्दी समारोह पूरे महाराष्ट्र में बडे धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर मदर टेरेसा द्वारा उनके जीवन पर बनी फिल्म, " देवकी नंदन गोपाला " का विमोचन किया गया। इस फिल्म को भारत सरकार ने कर मुक्त कर दिया था। इस अवसर पर गोपाल नीलकंठ दाण्डेकर, बसंत शिरवाडकर सहित विभिन्न लेखकों द्वारा गाडगे बाबा पर मराठी और अंग्रेजी में 13 पुस्तके प्रकाशित की गई थी। आज बहुत सी किताबे अन्य  लेखकों की प्रकाशित हो चुकी है तथा इन्टरनेट के माध्यम से खरीदी जा सकती। 

(ख). महाराष्ट्र सरकार ने गाडगे बाबा के सम्मान में महाराष्ट्र दिवस और मजदूर दिवस 1 मई, 1983 के दिन नागपुर विश्वविद्यालय को विभाजित करते हुए अमरावती में, " संत गाडगे बाबा विश्वविद्यालय, अमरावती " की स्थापना की थी। भारत सरकार मानव संसाधन विकास विभाग द्वारा सन् 2002 में इस विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर (एन. ए. ए. सी. ) की मान्यता प्रदान की और आज वह  कामनवेल्थ विश्वविद्यालयों लंदन का एसोसिएट सदस्य भी बन गया है। इंडिया टुडे हिन्दी सप्ताहिक, नई दिल्ली 2014 में प्रकाशित सर्वे रिपोर्ट के अनुसार देश के 45 विश्वविद्यालयों में उपरोक्त विश्वविद्यालय का स्थान 27 वां था। आज इस विश्वविद्यालय में 127 महाविद्यालय संबंधित है जिन में 90,000 विद्यार्थी अध्ययनरत है। गाडगे बाबा के इस सिद्धांत को ध्यान में रखकर कि, " मुक्ति के लिए शिक्षा आवश्यक है " इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी थी। 

(ग).  नवी मुंबई नगर निगम ने बर्ष 2012 में संत गाडगे बाबा के नाम पर नेरूल पूर्व, नवी मुंबई में एक बड़ा उद्यान (पार्क) बनाया है। जिसे रांक-गार्डन के नाम से जाना जाता है। यह एक अद्भुत पार्क है जिसमें संत गाडगे बाबा की मूर्ति स्थापित की गयी है। यह संत गाडगे बाबा की स्मृति में नवी मुंबई का सर्वोत्तम पार्क है। 

(घ).  भारत सरकार ने गाडगे बाबा की लोकप्रियता और उनके कार्यो को सम्मानित करते हुए उनके 42 वें परिनिर्वाण दिवस (20 दिसंबर) पर सन् 1998 मे उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया। 

(च).   महाराष्ट्र सरकार ने  सन् 2000-01 में संत गाडगे स्वच्छता अभियान की शुरुआत महाराष्ट्र के सभी गाँवों में कर गाडगे बाबा के कार्यो के महत्व को वृहद रूप में स्वीकार किया। महाराष्ट्र सरकार ने गाडगे बाबा के स्वच्छता अभियान के माध्यम से " लोगों द्वारा, लोगों के लिए " स्वच्छ गाँव की आवधारणा को साकार करने का प्रयास किया। इसके अलावा स्वच्छता के 11 मुख्य घटक ( पेरामीटर) निर्धारित किये गये है। 

      गाडगे बाबा के स्वावलंबन, श्रमदान और समुदायिक सहयोग के सिद्धांत पर गावों के स्वरूप को बदलने और लोगों के विकास का बराबर प्रयास किया। उनका कार्य और दर्शन सरकार की नीति का आधार बना। उनके यादगार में देश के विभिन्न हिस्सों में राष्ट्रीय और प्रदेशिक स्तर पर कई प्रकार की योजनाएं चल रही है जो उनका कीर्ति स्तम्भ है। समुदायिक भवनों, छात्रावासों, स्कूलों, धर्मशालाओं को और अधिक आधुनिक तथा विस्तारित करने के लिए नेताओं और जनप्रतिनिधियों को जन-जागरण की शुरुआत करनी होगी। देश तथा समाज हित के लिए आमजन को संत गाडगे महाराज की मसाल लेकर चलना ही होगा। 

*ऐसे महान संत के बारे में उपरोक्त जो कुछ भी लिखा गया है यह कम ही है, जैसे सूर्य को दिया की रोशनी दिखाना।

        महोदय, आशा  ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि आप संत गाडगे महाराज, निष्काम  कर्मयोगी, महान समाज सुधारक, महान विभूति का हर तरह से सकारात्मक अवलोकन कर " भारत रत्न " से विभूषित करने की महान अनुकम्पा करेंगे।

      सर, इससे संत गाडगे की विचारधारा से जुड़े करोड़ों भारतीय, खासकर महाराष्ट्रा, मध्य प्रदेश के लोगों में बहुत अच्छा सकारात्मक संदेश जायेगा। श्री मान जी 23 फरवरी, 2026, गाडगे महाराज का 150 वां जन्मदिन समारोह पर हम करोडों लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए उपरोक्त, भारत रत्न एक तोहफा भी होगा।

धन्यवाद, 

आपका प्रार्थी

(जी. डी. दिवाकर), अध्यक्ष

संत गाडगे मिशन, दिल्ली